Pandav Dance Concludes : गढ़वाल में महाभारत काल से चले आ रहे पांडव नृत्य का हुआ समापन
Pandav Dance Concludes : उत्तराखंड के गढ़वाल में लोक नृत्यों का खजाना बिखरा पड़ा है। लेकिन इनमें सबसे खास है पांडव नृत्य को माना जाता है। दरअसल गढ़वाल के बमण गांव में पौराणिक परंपराओं पर आधारित पांडव नृत्य 9 दिनों से चल रहा था। जिसका विधिवत परंपराओं से समापन हो गया है। बता दें नरेंद्रनगर के पट्टी क्वीली में 11 गांवों ने आज भी पाँडव नृत्य को जीवित रखा हुआ है।
पौराणिक मान्यता :
Pandav Dance Concludes : पाँडव नृत्य तब शूरू हुआ था जब महाभारत के युद्ध के बाद हत्या,गोत्र हत्या और ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए कृष्ण द्वैपायन और महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को शिव की शरण में जाने की सलाह दी थी। धार्मिक मान्यता है कि पांडवों ने भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए केदार भूमि में केदारनाथ मंदिर सहित कई मंदिरों का निर्माण करवाया था। जिसके बाद द्रोपदी सहित पांडव मोक्ष प्राप्ति के लिए बद्रीनाथ धाम होते हुए स्वर्गारोहिणी के लिए निकल गये थे। लेकिन युधिष्ठिर स्वर्ग के लिए सशरीर प्रस्थान किया। जबकि द्रोपदी और अन्य पांडवों ने उससे पहले ही अपने शरीर को त्याग दिया था।
Pandav Dance Concludes :
पांडव नृत्य का आयोजन :
Pandav Dance Concludes : मणगाँव के 11 गांव में हर तीसरे साल भव्य पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है। जो सदियों से करते चला आ रहा है। पांडवों के बद्री केदार भूमि के लिए प्रेम को गढ़वाल का लोक देवता बना दिया।पांडव नृत्य देखने के लिए कड़ाके की ठंड होेने के बाद भी रात को भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है। कहा जाता है कि इस धार्मिक आयोजन में आकर आने से माता कुंती का आशीर्वाद मिलता है।
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